चुनाव से पहले नीतीश का बड़ा दांव: वक्फ कानून विरोधी बलियावी बने अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष

चुनाव से पहले नीतीश का बड़ा दांव: वक्फ कानून विरोधी बलियावी बने अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष


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**नीतीश कुमार का बड़ा दांव: गुलाम रसूल बलियावी को अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष बनाकर साधा मुस्लिम वोट बैंक?**


पटना की सियासत एक बार फिर गरमा गई है। इस बार वजह है मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का वह फैसला, जिसमें उन्होंने जेडीयू के महासचिव और पूर्व सांसद गुलाम रसूल बलियावी को बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया है। यह फैसला एक सामान्य प्रशासनिक नियुक्ति भर नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी चुनावी राजनीति छिपी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिहार दौरे के दौरान हुई यह घोषणा यह संकेत देती है कि जेडीयू ने अल्पसंख्यकों को साधने की कवायद तेज कर दी है।


### बलियावी की नियुक्ति: रणनीति या मजबूरी?


गुलाम रसूल बलियावी बिहार में मुसलमानों के प्रभावशाली नेताओं में गिने जाते हैं। खास बात यह है कि वे जेडीयू में रहते हुए भी केंद्र सरकार द्वारा लाए गए वक्फ संशोधन विधेयक के खिलाफ मुखर रहे हैं। संसद में विधेयक पास होने के बाद उन्होंने सार्वजनिक मंचों पर केंद्र और राज्य की आलोचना करते हुए यहां तक कह दिया था, "अब संसद में कोई सेक्युलर और कोई कम्युनल नहीं बचा, सब नंगे हो गए हैं।" ऐसे बयानों के बावजूद नीतीश कुमार ने उन्हें एक संवैधानिक पद से नवाज़ा है, जिससे साफ संकेत मिलता है कि यह एक सोच-समझकर खेला गया ‘पॉलिटिकल कार्ड’ है।


### आयोग का पुनर्गठन और जातीय समीकरण


सरकार ने न केवल बलियावी को अध्यक्ष नियुक्त किया है, बल्कि आयोग में दो उपाध्यक्ष और आठ अन्य सदस्यों को भी शामिल किया है। उपाध्यक्षों में पटना सिटी के लखविंदर सिंह और गया के मौलाना उमर नूरानी शामिल हैं। सदस्यों में भी भौगोलिक और धार्मिक विविधता बरती गई है—बेगूसराय, नवादा, सिवान, जहानाबाद, सारण, किशनगंज, मुंगेर और अन्य जिलों के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया है। इससे यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि सरकार सभी अल्पसंख्यकों को समान रूप से प्रतिनिधित्व देना चाहती है।


### मुस्लिम वोट बैंक की चिंता?


बिहार की राजनीति में मुस्लिम वोट लंबे समय से जेडीयू और आरजेडी के बीच बंटते रहे हैं। लेकिन हाल के वर्षों में AIMIM जैसे दलों की सक्रियता और केंद्र की नीतियों को लेकर बढ़ती नाराज़गी ने मुस्लिम समुदाय में असंतोष को जन्म दिया है। वक्फ संशोधन विधेयक और नागरिकता कानून जैसे मुद्दों पर केंद्र की नीतियों को लेकर बिहार के कई मुस्लिम संगठनों ने विरोध दर्ज कराया। यहां तक कि नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी का बहिष्कार भी हुआ। ऐसे माहौल में बलियावी जैसे नेता को उच्च पद देना, एक तरह से मुस्लिम समाज को यह संदेश देना है कि सरकार उनकी बात सुन रही है।


### सियासी समीकरण का गणित


विश्लेषकों का मानना है कि बलियावी की नियुक्ति नीतीश कुमार की 'डैमेज कंट्रोल' रणनीति का हिस्सा है। एक तरफ भाजपा के साथ गठबंधन की मजबूरी है, तो दूसरी ओर मुस्लिम मतदाताओं की नाराजगी से निपटना भी जरूरी है। नीतीश कुमार का राजनीतिक इतिहास बताता है कि वे संतुलन की राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। एक ओर भाजपा के साथ सरकार चलाते हुए वे कई बार मुसलमानों के हित में बयान देते रहे हैं, और दूसरी ओर संवेदनशील मुद्दों पर चुप्पी भी साध लेते हैं।


### आने वाले चुनावों की तैयारी?


2025 के अंत में बिहार विधानसभा चुनाव संभावित हैं। ऐसे में सभी दल अपने-अपने वोट बैंक को मजबूत करने में जुटे हैं। जेडीयू के लिए मुस्लिम वोट बेहद अहम हैं, खासकर उन इलाकों में जहां AIMIM और आरजेडी ने अपनी पकड़ मजबूत की है। ऐसे में बलियावी को चेयरमैन बनाना एक सधा हुआ चुनावी कदम प्रतीत होता है।


### निष्कर्ष


गुलाम रसूल बलियावी की नियुक्ति को सिर्फ एक सरकारी आदेश की तरह देखना ठीक नहीं होगा। यह एक बड़ा राजनीतिक संकेत है—जेडीयू मुस्लिम समाज के नाराज़ धड़े को मनाने की कोशिश कर रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि बलियावी इस पद पर रहकर किस हद तक समुदाय की आवाज़ बन पाते हैं, और क्या नीतीश कुमार का यह दांव उन्हें आगामी चुनावों में मुसलमानों का भरोसा दिला पाता है या नहीं।

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