बिहार की संस्कृति को मिलेगा नया मंच: पटना और रोहतास में बनेंगे ‘मगही हाट’ और ‘भोजपुरी हाट’

बिहार की संस्कृति को मिलेगा नया मंच: पटना और रोहतास में बनेंगे ‘मगही हाट’ और ‘भोजपुरी हाट’


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**बिहार की संस्कृति को मिलेगा नया मंच: पटना और रोहतास में बनेंगे ‘मगही हाट’ और ‘भोजपुरी हाट’**

बिहार की मिट्टी सिर्फ इतिहास और विरासत की नहीं, बल्कि जीवंत परंपराओं और लोक संस्कृति की भी गवाह है। अब इसी सांस्कृतिक पहचान को और मजबूती देने के लिए राज्य सरकार एक नया कदम उठा रही है। मिथिला हाट की सफलता को देखते हुए अब पटना में 'मगही हाट' और रोहतास में 'भोजपुरी हाट' की स्थापना की जा रही है। ये न सिर्फ स्थानीय कला, व्यंजन और परंपराओं को एक मंच देंगे, बल्कि पर्यटन और रोजगार को भी नया आयाम देंगे।


मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने यह निर्णय लिया है कि जिस तरह मधुबनी में मिथिला हाट बना और आज यह एक प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र बन चुका है, उसी तरह मगध और भोजपुर की समृद्ध संस्कृति को भी नए केंद्र मिलें। मगही हाट पटना के हेक्सा भवन में बनेगा, जो गांधी मैदान के पास स्थित है और फिलहाल जर्जर अवस्था में है। इस हाट का निर्माण 48 करोड़ 96 लाख रुपये की लागत से किया जाएगा और इसे जून 2027 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। वहीं भोजपुरी हाट रोहतास के इंद्रपुरी बैराज के पास जल संसाधन विभाग की 10 एकड़ ज़मीन पर तैयार किया जाएगा। इसकी लागत 25 करोड़ 25 लाख रुपये तय की गई है और सितंबर 2026 तक इसका काम पूरा हो जाएगा।


इन दोनों हाटों का स्वरूप बिल्कुल मिथिला हाट और दिल्ली हाट जैसा होगा, जहां स्थानीय हस्तशिल्प, पारंपरिक पकवान और लोक कलाएं देखने को मिलेंगी। पटना का मगही हाट तीन मंजिला इम्पोरियम होगा, जिसमें दो रेस्तरां, बच्चों के लिए गेम ज़ोन, हस्तकला की दुकानें और अंडरग्राउंड पार्किंग जैसी आधुनिक सुविधाएं होंगी। वहीं रोहतास का भोजपुरी हाट प्राकृतिक सुंदरता से घिरे इंद्रपुरी बैराज के समीप स्थित होगा, जो खुद में एक आकर्षण का केंद्र बनेगा।


भोजपुरी हाट में सत्तू, लिट्टी-चोखा, मखाना खीर और बड़ी रोटी जैसे पारंपरिक व्यंजन मिलेंगे। कैमूर पहाड़ियों और आसपास के गांवों से आने वाले किसान और वनवासी अपने उत्पाद बेच सकेंगे। लकड़ी के खिलौने, मिट्टी के बर्तन, पारंपरिक वस्त्र और हस्तशिल्प भी यहां बिकेंगे। इसके अलावा यह जगह विवाह जैसे आयोजनों के लिए भी एक उत्तम विकल्प बनेगा।


मगही हाट में भी पर्यटक गंगा नदी की ठंडी हवा के बीच मगध की कला और संस्कृति का आनंद ले सकेंगे। यहां 'वोकल फॉर लोकल' को भी बढ़ावा मिलेगा और स्थानीय कलाकारों और शिल्पकारों को एक स्थायी बाजार उपलब्ध होगा। यह हाट न सिर्फ व्यावसायिक केंद्र बनेंगे, बल्कि सांस्कृतिक संगठनों, कलाकारों, युवाओं और पर्यटकों के लिए भी एक जीवंत मंच साबित होंगे।


गौरतलब है कि बिहार का पहला और एकमात्र सांस्कृतिक हाट अभी तक मधुबनी जिले के झंझारपुर में स्थित मिथिला हाट था, जो 26 एकड़ में फैला है और जहां 4500 लोगों के रुकने की व्यवस्था है। वहां आज भी परंपरागत उपकरण जैसे ढेकी, जांता, उखैड मौजूद हैं। महिलाएं मिट्टी के तवे पर मडुआ और मक्के की रोटियां बना रही हैं और ठरिया साग, दूध बगिया, बैगन का चोखा जैसे व्यंजन परोसे जाते हैं। अब मगही और भोजपुरी हाटों के आने से बिहार के अलग-अलग अंचलों की सांस्कृतिक विविधता को भी एक नई पहचान मिलेगी।


यह पहल सिर्फ भवन निर्माण नहीं, बल्कि सांस्कृतिक अस्मिता, आत्मनिर्भरता और पर्यटन की संभावनाओं को एक साथ जोड़ने वाली है। बिहार की लोकशैली, भोजन, पहनावा और कला अब एक बार फिर जन-जन तक पहुंचेगी, और युवा पीढ़ी को भी अपनी जड़ों से जुड़ने का अवसर मिलेगा।

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