बिहार चुनाव से पहले महागठबंधन में दरार! पप्पू यादव बोले- कांग्रेस अकेले लड़े विधानसभा चुनाव
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बिहार की राजनीति में एक बार फिर से हलचल तेज़ हो गई है। चुनाव की आहट है और बयानबाज़ियों का दौर शुरू हो चुका है। इसी कड़ी में पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव का एक बड़ा बयान सामने आया है, जिसने महागठबंधन की नींव को हिला कर रख दिया है। पप्पू यादव ने कहा है कि कांग्रेस को बिहार में अकेले विधानसभा चुनाव लड़ना चाहिए। उन्होंने खुलकर कहा कि कांग्रेस को नया रास्ता अपनाना चाहिए और अपने दम पर बिहार की जनता का भरोसा जीतने की कोशिश करनी चाहिए। पप्पू यादव का यह बयान ऐसे वक्त पर आया है जब महागठबंधन में सीटों को लेकर लगातार खींचतान चल रही है। कांग्रेस पहले ही यह स्पष्ट कर चुकी है कि वह महागठबंधन में रहकर ही चुनाव लड़ेगी, लेकिन तेजस्वी यादव को लेकर अब तक पार्टी का स्टैंड पूरी तरह साफ नहीं है।
पप्पू यादव ने इस बयान में लालू यादव और नीतीश कुमार का नाम लिए बिना उन पर तंज कसा। उन्होंने कहा कि 40 साल से वही पुराने चेहरे बिहार की राजनीति में एक्टिव हैं और जनता की स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया। अब वक्त है कि नया रास्ता अपनाया जाए और कांग्रेस आगे बढ़े। उन्होंने कहा कि बिहार की 13 करोड़ जनता को बचाने के लिए कांग्रेस को एक विकल्प के तौर पर खुद को पेश करना चाहिए। राहुल गांधी की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि वे EBC, OBC, SC, ST और संविधान की बात कर रहे हैं। उन्होंने गरीबों की आवाज़ उठाई है और आज बिहार की जनता राहुल गांधी की ओर उम्मीद से देख रही है। पप्पू यादव ने यहां तक कह दिया कि कांग्रेस जो भी निर्णय लेगी, वे उसके साथ खड़े रहेंगे।
आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव से पहले पप्पू यादव ने अपनी जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया था। हालांकि तकनीकी रूप से वे कांग्रेस में शामिल नहीं हुए, लेकिन लगातार पार्टी के पक्ष में बयान देते रहे हैं। अब जब विधानसभा चुनाव नज़दीक है और महागठबंधन की बैठकें हो रही हैं, ऐसे में पप्पू यादव का ये बयान महागठबंधन की एकता पर सवाल खड़ा कर रहा है। विशेषकर उस समय जब कांग्रेस और RJD के बीच सीट शेयरिंग और मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर पहले से ही मतभेद हैं। कांग्रेस पहले ही RJD पर दबाव बना रही है कि उसे 2020 से अधिक सीटें दी जाएं। पिछली बार कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था और मात्र 19 सीटें जीत पाई थी। इस बार वह खुद को मजबूत स्थिति में मान रही है और RJD से ज्यादा सीटें चाहती है।
महागठबंधन की तरफ से तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बताया गया है, हालांकि औपचारिक रूप से अभी तक कोई ऐलान नहीं हुआ है। अब तक इस मुद्दे पर महागठबंधन की तीन बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन कांग्रेस तेजस्वी को पूरी तरह स्वीकार करने के मूड में नहीं दिख रही है। वहीं दूसरी ओर तेजस्वी को महागठबंधन की कोऑर्डिनेशन कमेटी का अध्यक्ष बना दिया गया है, जिससे यह संकेत जरूर मिलता है कि RJD उन्हें ही आगे करना चाहती है। लेकिन कांग्रेस इस पर अब भी चुप है। ऐसे में पप्पू यादव का ये बयान महज व्यक्तिगत राय नहीं, बल्कि एक रणनीतिक दांव भी माना जा सकता है, जिससे कांग्रेस को मजबूत करने और महागठबंधन की सीटों की राजनीति पर असर डालने की कोशिश की जा रही है।
बिहार की राजनीति में पप्पू यादव को एक बगावती नेता के तौर पर देखा जाता है। वे कई बार बड़े फैसलों और बयानों से राजनीतिक पारा चढ़ा चुके हैं। इस बार भी जब बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव की चर्चा जोरों पर है, उनका यह बयान सियासी गलियारों में भूचाल ला सकता है। कांग्रेस पहले ही सीटों को लेकर नाराज़ है और अब पप्पू यादव की तरफ से खुलेआम अकेले चुनाव लड़ने की सलाह महागठबंधन में दरार को और गहरा कर सकती है।
बिहार की राजनीति में गठबंधन की राजनीति हमेशा से एक अहम भूमिका निभाती रही है। लेकिन जब गठबंधन के अंदर ही चेहरे और नेतृत्व को लेकर असमंजस हो, तो यह मतदाताओं के बीच भी भ्रम की स्थिति पैदा करता है। यही वजह है कि पप्पू यादव कांग्रेस को साफ-साफ एक नया और स्पष्ट रास्ता अपनाने की सलाह दे रहे हैं। उनका कहना है कि अगर कांग्रेस पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़े तो जनता उसे विकल्प के तौर पर ज़रूर स्वीकार करेगी।
अब देखने वाली बात ये होगी कि कांग्रेस पप्पू यादव की सलाह को कितना गंभीरता से लेती है। क्या वह सच में बिहार में अकेले चुनाव लड़ने पर विचार करेगी या फिर महागठबंधन के साथ समझौते की नीति पर ही चलेगी? साथ ही, क्या तेजस्वी यादव को कांग्रेस खुले दिल से स्वीकार करेगी या फिर मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर विवाद और गहराएगा? इन सभी सवालों के जवाब आने वाले दिनों में बिहार की राजनीति की दिशा तय करेंगे।
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