पटना महापौर की नाराजगी: CM नीतीश को पत्र लिख नगर निगम की अनदेखी पर जताया विरोध

पटना महापौर की नाराजगी: CM नीतीश को पत्र लिख नगर निगम की अनदेखी पर जताया विरोध


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**महापौर सीता साहू का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र – पटना नगर निगम की अनदेखी पर उठाए सवाल**

पटना की राजनीति में इन दिनों एक नई हलचल मची हुई है। पटना नगर निगम की महापौर सीता साहू ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर शिलान्यास और उद्घाटन कार्यक्रमों में नगर निगम को नजरअंदाज करने का गंभीर आरोप लगाया है। महापौर का कहना है कि नगर निगम, जो कि जनता के सीधे संपर्क में रहता है और शहर के विकास की जिम्मेदारी उठाता है, उसे लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है।


महापौर ने 20 मई को आयोजित एक सरकारी कार्यक्रम का हवाला देते हुए कहा कि इस समारोह में नगर निगम के महापौर और उप महापौर को आमंत्रित नहीं किया गया। यही नहीं, कार्यक्रम से पहले जारी किए गए पोस्टर में भी उनका नाम तक नहीं था। हालांकि बाद में नाम जोड़ा गया, लेकिन तब तक संदेश स्पष्ट था – नगर निगम की भूमिका को कमतर आंका जा रहा है।


सीता साहू ने इस घटना को अकेली नहीं बताया, बल्कि कहा कि पहले भी कई बार ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। उन्होंने पत्र में लिखा है कि नगर निगम के प्रतिनिधि जनता द्वारा चुने जाते हैं और अगर उन्हें कार्यक्रमों में शामिल ही नहीं किया जाएगा, तो न केवल उनके अधिकारों का हनन होगा, बल्कि जनता का विश्वास भी टूटेगा।


इस मुद्दे पर पटना ही नहीं, पूरे बिहार के निकायों में गुस्सा देखने को मिला। बिहार नगर निकास महासंघ का एक प्रतिनिधिमंडल नगर विकास एवं आवास मंत्री जीवेश मिश्रा से मिला और सरकार द्वारा निकायों के अधिकार क्षेत्र में हो रहे हस्तक्षेप पर चिंता जताई। इस प्रतिनिधिमंडल में राज्य भर के महापौर, पार्षद और सभापति शामिल थे।


महापौर सीता साहू ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि भविष्य में किसी भी सरकारी कार्यक्रम में नगर निगम की भूमिका को नजरअंदाज न किया जाए और सभी चुने हुए जनप्रतिनिधियों को सम्मानजनक स्थान दिया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि यदि ऐसा नहीं होता, तो वे लोकतांत्रिक तरीके से आंदोलन करने को मजबूर होंगी।


इस पूरे मामले पर अभी मुख्यमंत्री की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को लपकते हुए सरकार पर हमला बोलना शुरू कर दिया है। उनका आरोप है कि राज्य सरकार स्थानीय निकायों की ताकत को कमजोर कर रही है, ताकि पूरे नियंत्रण को अपने हाथ में रखा जा सके।


यह मामला केवल एक व्यक्ति या पद की अनदेखी नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र और स्थानीय शासन की प्रतिष्ठा का सवाल है। यदि महापौर जैसे पद पर बैठे जनप्रतिनिधियों को भी सम्मान नहीं मिलेगा, तो आम नागरिकों की समस्याएं किस तक पहुंचेंगी?


अब सबकी निगाहें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रतिक्रिया और आगामी कदम पर टिकी हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मसले को गंभीरता से लेती है या इसे राजनीतिक शोर मानकर नजरअंदाज कर देती है।

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