जानिए कांग्रेस किसे नहीं देगी टिकट! परिक्रमा करने वालो की आई शामत?

जानिए कांग्रेस किसे नहीं देगी टिकट! परिक्रमा करने वालो की आई शामत?


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बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों में कांग्रेस ने पूरी ताकत झोंक दी है। पार्टी ने अपनी रणनीति को मजबूत करने के लिए राष्ट्रीय स्तर के दिग्गज नेताओं को लगातार बिहार दौरे पर भेजना शुरू कर दिया है। कांग्रेस इस बार कोई भी गलती दोहराने के मूड में नहीं है और इसी वजह से पार्टी के अंदर टिकट बंटवारे को लेकर सख्ती दिख रही है। महागठबंधन के तहत कांग्रेस ने अपनी सीटों की मांग को लगभग स्पष्ट कर दिया है, लेकिन असली कसौटी टिकट पाने वाले उम्मीदवारों की होगी। बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ने टिकट वितरण को लेकर दो टूक संदेश दे दिया है कि इस बार सिर्फ वही उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरेंगे जिनका जमीनी जनाधार मजबूत होगा। उन्होंने उन नेताओं को कड़ी चेतावनी दी है जो गणेश परिक्रमा करके टिकट हासिल करने की फिराक में हैं।  

पिछले विधानसभा चुनाव की नाकामी से सबक लेते हुए कांग्रेस अब पूरी तरह से व्यावहारिक रणनीति अपनाने जा रही है। कृष्णा अल्लावरू ने साफ शब्दों में कहा कि 2020 में कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन महज 19 सीटें ही जीत पाई। ऐसे में अब पार्टी उन उम्मीदवारों को मैदान में उतारेगी जो सिर्फ हाईकमान के इर्द-गिर्द घूमने के बजाय जनता के बीच अपनी मजबूत पकड़ रखते हैं। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि टिकट की आस में पार्टी कार्यालय की परिक्रमा करने वाले नेताओं को चिह्नित करके उन्हें टिकट देने से वंचित किया जाएगा। इस बार पार्टी से वही उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे जिनका जमीनी आधार मजबूत हो और जो जनता से जुड़े हुए हों।  

कांग्रेस प्रभारी ने यह भी इशारा किया कि गठबंधन में सीटों का बंटवारा महत्वपूर्ण जरूर होगा, लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी यह देखना होगा कि जिन उम्मीदवारों को टिकट दिया जा रहा है, क्या वे जनता के बीच अपनी स्वीकार्यता रखते हैं या नहीं। कांग्रेस की इस सख्ती का सीधा मतलब है कि सिर्फ टिकट मिलना ही काफी नहीं होगा, बल्कि उम्मीदवारों को जीत सुनिश्चित करनी होगी। उन्होंने दोहराया कि 2020 में कांग्रेस को 70 सीटें मिली थीं, लेकिन नतीजा महज 19 सीटों तक सीमित रह गया। पार्टी को इस हार की कीमत चुकानी पड़ी और इसे लेकर विपक्षी दलों ने कांग्रेस की काफी आलोचना भी की थी।  


बिहार कांग्रेस प्रभारी के बयान से साफ हो गया है कि इस बार पार्टी बिना ठोस रणनीति के मैदान में उतरने वाली नहीं है। महागठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर अब तक कोई औपचारिक ऐलान नहीं हुआ है, लेकिन कांग्रेस अपनी स्थिति को पहले से ही स्पष्ट कर चुकी है। पार्टी इस बार केवल उन्हीं उम्मीदवारों को मौका देगी जिनका प्रदर्शन बेहतर हो और जिनके जीतने की संभावना अधिक हो। ऐसे में वे नेता जो सिर्फ पार्टी कार्यालय के चक्कर लगाकर टिकट पाने की कोशिश में हैं, उनके लिए यह बड़ा झटका साबित हो सकता है।  


राजनीतिक गलियारों में कांग्रेस की इस रणनीति को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। पार्टी यह सुनिश्चित करना चाहती है कि इस बार उसके उम्मीदवार मजबूत जनाधार वाले हों, ताकि चुनावी नतीजे पिछली बार की तरह निराशाजनक न रहें। टिकट वितरण की इस सख्त नीति से कई नेता असहज महसूस कर सकते हैं, लेकिन पार्टी के भीतर इसे एक जरूरी सुधार के तौर पर देखा जा रहा है। कांग्रेस का यह कदम पार्टी संगठन को मजबूत करने और अपनी चुनावी साख बचाने की दिशा में एक बड़ा बदलाव साबित हो सकता है।  


बिहार चुनाव में कांग्रेस का यह नया रूप महागठबंधन की राजनीति को भी प्रभावित कर सकता है। अब सवाल यह है कि पार्टी अपने इस फैसले पर कितनी मजबूती से कायम रहती है और क्या यह सख्ती कांग्रेस को बिहार में बेहतर नतीजे दिलाने में सफल होगी? टिकट की आस लगाए बैठे संभावित उम्मीदवारों के लिए अब असली चुनौती यह होगी कि वे खुद को जनता का सच्चा प्रतिनिधि साबित करें, वरना कांग्रेस इस बार उन्हें टिकट की रेस से बाहर कर देगी।

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