जो शक्ति सत्ता से पैदा होती, उसकी उम्र... आरिफ मोहम्मद खान के बयान से सियासत गरम....!

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"बिहार विधानसभा चुनाव 2025: कांग्रेस की नई रणनीति और कन्हैया कुमार की संभावित वापसी से सियासी हलचल"

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर कांग्रेस पार्टी अपनी रणनीतियों में तेजी से बदलाव लाते हुए नजर आ रही है। राहुल गांधी की सक्रियता के बाद, जिन्होंने चुनावी वर्ष की शुरुआत में 20 दिनों के भीतर दो बार बिहार का दौरा किया, अब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी राज्य में आ चुके हैं। पार्टी के आलकमान की बढ़ती सक्रियता इस बात का संकेत दे रही है कि कांग्रेस बिहार चुनाव को पूरे दमखम से लड़ने के लिए तैयार है। इसके लिए पार्टी एक ऐसे नेता को वापस बिहार भेजने की योजना बना सकती है, जिससे राज्य की राजनीति में भूचाल आ सकता है – वह नेता हैं कन्हैया कुमार। 

सियासी गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि कांग्रेस पार्टी कन्हैया कुमार को एक बार फिर बिहार भेजने पर विचार कर रही है। कहा जा रहा है कि उन्हें बेगूसराय जिले की किसी विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है। अगर यह खबर सच हुई तो इसका असर महागठबंधन पर भी पड़ सकता है, खासकर राजद अध्यक्ष लालू यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव पर। कन्हैया कुमार की वापसी से महागठबंधन में टकराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। 

कन्हैया कुमार की सियासी यात्रा की शुरुआत वामपंथी दलों के साथ हुई थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बेगूसराय से भाजपा के गिरिराज सिंह के खिलाफ ताल ठोकी थी, हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद कन्हैया ने कांग्रेस पार्टी जॉइन की और माना जा रहा था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्हें बेगूसराय से ही टिकट मिल सकता है। हालांकि, लालू यादव के दबाव के कारण कांग्रेस ने उन्हें दिल्ली से चुनावी मैदान में उतार दिया, जहां वे हार गए। अब एक बार फिर पार्टी उन्हें बिहार भेजने की तैयारी कर रही है, जिससे सियासी समीकरण पूरी तरह बदल सकते हैं।


दिलचस्प बात यह है कि कन्हैया कुमार ने हाल ही में बेगूसराय में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई और वहां उन्होंने एक बड़ी बात कह दी, जिससे राजनीतिक माहौल में और गर्मी आ गई है। कन्हैया कुमार ने स्पष्ट तौर पर कहा कि अगर राजद कांग्रेस की शर्तों को सम्मान के साथ नहीं मानता, तो कांग्रेस अकेले 243 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस अपने लिए एक मजबूत रणनीति तैयार कर रही है और अगर गठबंधन की शर्तें नहीं मानी गईं, तो पार्टी बिना किसी गठबंधन के बिहार में चुनावी समर में कूद सकती है।

कन्हैया कुमार के इस बयान ने बिहार की सियासी धारा को एक नया मोड़ दे दिया है। जहां एक ओर कांग्रेस पार्टी ने बिहार में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं, वहीं दूसरी ओर यह सवाल भी खड़ा हो रहा है कि क्या राजद और कांग्रेस के बीच में मतभेद बढ़ेंगे। क्या महागठबंधन का भविष्य अब खतरे में पड़ सकता है, या फिर कन्हैया कुमार के कदम से बिहार में एक नई सियासी दिशा की शुरुआत होगी? 

इसके अलावा, यह भी चर्चा का विषय है कि कन्हैया कुमार की वापसी से बिहार की राजनीति में कौन सा नया समीकरण बन सकता है। क्या इससे बिहार में कांग्रेस और राजद के बीच तनाव बढ़ेगा, या फिर यह दोनों दल एक नई रणनीति के तहत चुनावी मैदान में उतरेंगे? राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि कन्हैया कुमार की वापसी न केवल महागठबंधन के लिए चुनौती बन सकती है, बल्कि यह बिहार की राजनीति के समग्र परिदृश्य को भी बदल सकती है। 

कांग्रेस द्वारा कन्हैया कुमार को बिहार भेजने का निर्णय, अगर सही साबित हुआ, तो यह आगामी विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है। अब देखना यह होगा कि कन्हैया कुमार की वापसी से कांग्रेस की चुनावी रणनीति कितनी कारगर साबित होती है, और क्या यह राजद के साथ कांग्रेस के रिश्ते को और मजबूत करेगा या फिर इनमें दूरी बढ़ जाएगी। बिहार की राजनीति में इस वक्त कई तरह के संभावित घटनाक्रम हो सकते हैं, जो आने वाले समय में राज्य की चुनावी लहर को आकार दे सकते हैं।

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