केबिनेट विस्तार के बाद BJP आगे, लाड़ले मुख्यमंत्री पर लटक गयी तलवार.....?

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"नीतीश कुमार की लाडला सियासत: बिहार में मंत्रिमंडल विस्तार और नए समीकरणों का आगाज"


बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार का राजनीतिक कद एक पहेली की तरह है, जिसका जवाब है "लाडला". यह शब्द उनकी स्थिति को पूरी तरह से दर्शाता है, क्योंकि बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार हमेशा से सत्ता के केंद्र में रहे हैं, और उनकी राजनीति भी कभी सीधे तो कभी उलटे मोड़ पर अपने अनुकूल परिणाम देती रही है। हाल ही में, नीतीश कुमार के नेतृत्व में सात नए मंत्री बीजेपी के कोटे से बिहार सरकार में शामिल हुए हैं, जिसने राज्य की राजनीति में एक नया समीकरण उत्पन्न किया है। इस मंत्रिमंडल विस्तार के साथ, जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों का महत्व और अधिक बढ़ गया है।


नीतीश कुमार की सियासत एक पहेली की तरह है, जहां उनका नाम उल्टा-सीधा दोनों से समान दिखता है। जैसे एक मशहूर पहेली में तीन अक्षरों का ऐसा नाम पूछा जाता है, जो उल्टा और सीधा एक जैसा हो, उसी तरह बिहार की सियासत में नीतीश कुमार ने खुद को सीएम के तौर पर लाडला साबित किया है। बाएं से दाएं जाइए या दाएं से बाएं, नीतीश कुमार की राजनीति में वे एक समान रूप से महत्वपूर्ण बने रहते हैं। इस बार बीजेपी के कोटे से सात नए मंत्रियों के शपथ लेने से ऐसा प्रतीत होता है कि सब कुछ शांति से हो रहा है, लेकिन इस "लाडला" सियासत में किए गए फैसले राजनीतिक तूफान भी पैदा कर सकते हैं। 


नीतीश कुमार की सरकार में बीजेपी के सात नए मंत्रियों के शामिल होने से राज्य की राजनीति में नए समीकरण उभर रहे हैं, लेकिन उनके इस विस्तार पर उनका बयान और भी दिलचस्प है। नीतीश कुमार ने अपने मंत्रिमंडल के विस्तार पर मीडिया से बातचीत करते हुए कहा, "सभी को बधाई", और इसके अलावा ज्यादा कुछ नहीं कहा। यह चुप्पी और उनका शांत तरीके से दिए गए बयान ने राजनीति के जानकारों के मन में शंका पैदा कर दी है कि कहीं यह शांति सिर्फ एक बाहर से दिखने वाली बात न हो। क्या नीतीश कुमार अब सच में सीधी चाल चलने लगे हैं, या फिर उनके मन में किसी और बड़े राजनीतिक कदम की तैयारी हो रही है?


आधिकारिक तौर पर बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने इस विस्तार पर टिप्पणी करते हुए कहा, "मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने बिहार के विकास को गति देने के लिए सात मंत्रियों को मंत्री बनाया है।" उनके इस बयान से यह साफ संकेत मिलता है कि सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार विकास और सुशासन के लिए किया गया है। हालांकि, नीतीश कुमार के बयान और चुप्पी पर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस तरह की घटनाओं के पीछे कोई गहरी सियासी सोच हो सकती है। 


नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल विस्तार के इस मामले को लेकर राजनीति में एक दिलचस्प सवाल उठता है - कि बीजेपी कोटे से ही क्यों मंत्री बन रहे हैं, जेडीयू से क्यों नहीं? दरअसल, बिहार विधानसभा में जेडीयू के 45 विधायक हैं, जबकि बीजेपी के पास 80 विधायक हैं। पहले से तय समझौते के तहत, हर तीन से चार विधायकों पर एक मंत्री का गठन किया जाना था। इस आधार पर, जेडीयू के पास पहले से 13 मंत्री थे, जबकि बीजेपी के पास 15 मंत्री थे। इस समझौते के तहत ही बीजेपी को सात नए मंत्री बनाने का अवसर मिला। 


सवाल यह उठता है कि क्या बिहार की सियासत में इस विस्तार के बाद बीजेपी और जेडीयू के बीच का समीकरण जटिल हो सकता है, और क्या महागठबंधन का भविष्य इस पर निर्भर करेगा?


यह मंत्रिमंडल विस्तार नीतीश कुमार की सियासत में एक नया अध्याय हो सकता है, जहां उनके "लाडला" सियासी अंदाज में बदलाव की संभावना हो सकती है। आगामी चुनावों से पहले, बिहार की राजनीति में आने वाले समय में कई राजनीतिक झंझावतों का सामना करना पड़ सकता है, और इस विस्तार को लेकर उठने वाली जटिलताएं उन समीकरणों को और भी दिलचस्प बना सकती हैं।

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