PMCH में रेप पीड़िता की मौत पर NHRC सख्त, बिहार सरकार और DGP को नोटिस जारी
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बिहार की राजधानी पटना से एक बेहद संवेदनशील और झकझोर देने वाली खबर सामने आई है, जिसने ना सिर्फ प्रशासन को कठघरे में खड़ा किया है, बल्कि पूरे प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था और कानून व्यवस्था पर भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं। मामला है एक नौ वर्षीय रेप पीड़िता का, जिसकी मौत पटना के PMCH अस्पताल में हो गई। अब इस पूरे मामले पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग यानी NHRC ने स्वतः संज्ञान लेते हुए बिहार सरकार और राज्य के डीजीपी को नोटिस जारी किया है। आयोग ने इस मामले को मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन की श्रेणी में माना है और दो सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।
यह घटना 26 मई को मुजफ्फरपुर जिले में हुई, जहां नौ साल की मासूम बच्ची के साथ दरिंदगी की गई। बच्ची को 30 मई को गंभीर हालत में पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल यानी PMCH लाया गया, लेकिन हैरानी और दुख की बात ये है कि बच्ची को कई घंटों तक अस्पताल में बिस्तर नहीं मिल सका और वह एंबुलेंस में ही तड़पती रही। इलाज की इस लापरवाही ने बच्ची की जान ले ली और 1 जून को उसकी मौत हो गई। यह खबर जैसे ही मीडिया में सामने आई, पूरे प्रदेश में आक्रोश फैल गया। NHRC ने इसी खबर का संज्ञान लेते हुए यह बड़ा कदम उठाया है।
NHRC की ओर से साफ तौर पर कहा गया है कि यदि यह खबर सही है, तो यह ना सिर्फ मानवाधिकारों का उल्लंघन है बल्कि एक असंवेदनशील और अमानवीय प्रशासनिक रवैये का प्रतीक है। आयोग ने बिहार के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी कर पूरे मामले में दो हफ्तों के भीतर विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा है। इसमें यह भी पूछा गया है कि पीड़िता को समय रहते इलाज क्यों नहीं मिला और अस्पताल की जिम्मेदारी किस स्तर पर विफल रही।
इस मामले ने एक बार फिर बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी है। जिस प्रदेश में PMCH जैसे बड़े सरकारी अस्पताल में भी रेप पीड़िता को तत्काल इलाज ना मिल सके, वहां आम नागरिकों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और संवेदनशीलता पर सवाल उठना लाज़िमी है। दुख की बात ये है कि ये कोई पहली घटना नहीं है। इसके पहले भी कई बार इस तरह की लापरवाही सामने आ चुकी है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर केवल जांच के आदेश और फाइलों में बंद होती रिपोर्टें दिखाई देती हैं।
इस मामले में एक और चौंकाने वाली बात सामने आई है कि जिस आरोपी ने इस बच्ची के साथ दरिंदगी की, वह पहले भी इसी तरह की घटना को अंजाम दे चुका है। रिपोर्ट्स के मुताबिक उसने एक बार पहले 12 वर्षीय एक और लड़की के साथ बलात्कार किया और उसे मारने की कोशिश भी की थी। सवाल ये है कि ऐसे दरिंदे खुले में घूमते कैसे हैं? क्या हमारी कानून व्यवस्था इतनी लचर हो चुकी है कि ऐसे अपराधियों को पकड़ने और सजा देने में इतना वक्त लग जाता है?
इस मामले को लेकर राजनीतिक गलियारों में भी हलचल तेज हो गई है। विपक्ष ने राज्य सरकार को जमकर घेरा है। तेजस्वी यादव ने नीतीश सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि बिहार में कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है और महिलाओं की सुरक्षा अब भगवान भरोसे है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि दोषियों को फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई कर जल्द से जल्द कड़ी सजा दी जाए और अस्पताल प्रशासन पर भी कठोर कार्रवाई की जाए।
इस घटना ने ना सिर्फ एक बच्ची की जान ली, बल्कि पूरे समाज को आईना दिखा दिया है कि हम कितने असंवेदनशील होते जा रहे हैं। एक रेप पीड़िता बच्ची जो पहले ही मानसिक और शारीरिक पीड़ा से गुजर रही थी, उसे समय पर इलाज भी नहीं मिल सका। ऐसे में सवाल उठता है कि हमारे सिस्टम की प्राथमिकता क्या है? क्या वीआईपी लोगों के लिए ही व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त है और आम जनता के लिए भगवान के भरोसे?
अब देखना ये है कि NHRC की इस कार्रवाई के बाद सरकार क्या कदम उठाती है। क्या दोषियों को सज़ा मिलेगी? क्या अस्पताल प्रशासन की जवाबदेही तय होगी? और सबसे जरूरी, क्या भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए कोई ठोस व्यवस्था बनाई जाएगी?
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