बिहार फर्स्ट की जमीनी तैयारी: विधानसभा चुनाव से पहले चिराग पासवान को मैदान में उतारने की कवायद तेज़
YouTube video link.....https://youtu.be/vY0NmXRzuYs
बिहार की राजनीति एक बार फिर करवट ले रही है और इस बार केंद्र में हैं लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के सुप्रीमो चिराग पासवान। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों ने रफ्तार पकड़ ली है और इसके साथ ही चर्चाएं तेज़ हो गई हैं कि क्या चिराग पासवान अब सिर्फ दिल्ली की राजनीति तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि बिहार की ज़मीन पर उतरकर प्रत्यक्ष रूप से नेतृत्व संभालेंगे?
दरअसल, पार्टी के अंदर से ही अब ये मांग खुलकर सामने आ रही है कि चिराग पासवान बिहार विधानसभा चुनाव लड़ें और वह भी किसी सुरक्षित यानी आरक्षित सीट से नहीं, बल्कि सामान्य सीट से। पार्टी के सांसद अरुण भारती ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर जो पोस्ट साझा की है, उसने इस चर्चा को और बल दे दिया है। उन्होंने लिखा, “जब नेता पूरे बिहार का है, तो सीट का दायरा क्यों सीमित हो?” उनका ये सवाल दरअसल पार्टी कार्यकर्ताओं की उस भावना की तरफ इशारा करता है जो चाहती है कि चिराग अब बिहार विधानसभा का नेतृत्व सीधे तौर पर करें।
अरुण भारती ने आगे लिखा कि “चिराग पासवान अब सिर्फ एक समुदाय की उम्मीद नहीं हैं, बल्कि पूरे बिहार की उम्मीद हैं।” यह बयान सिर्फ भावनात्मक नहीं, बल्कि पार्टी की रणनीतिक दिशा को भी दर्शाता है। चिराग पासवान जिस नारे को लेकर राजनीति में आगे बढ़े—‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’—अब उसे ज़मीन पर उतारने की कवायद शुरू हो चुकी है। यही नहीं, उन्होंने यह भी साफ किया कि चिराग हमेशा कहते आए हैं कि उनकी राजनीति बिहार केंद्रित है और वह खुद बिहार में रहकर नेतृत्व करना चाहते हैं। यानि साफ है कि पार्टी का फोकस अब राष्ट्रीय राजनीति से ज़्यादा राज्य स्तर पर अपनी पकड़ मज़बूत करने पर है।
पार्टी की तरफ से लगातार ऐसे संकेत दिए जा रहे हैं कि 2025 के चुनाव में चिराग की भूमिका निर्णायक होगी। एलजेपीआर अब पूरी तरह से सक्रिय हो गई है, ज़मीनी स्तर पर संगठन को मज़बूत किया जा रहा है और प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में कार्यकर्ता सम्मेलन और संपर्क कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। ये सब दर्शाता है कि चिराग पासवान बिहार की राजनीति में कोई छोटी भूमिका नहीं निभाना चाहते, बल्कि मुख्य भूमिका में आना चाहते हैं।
चुनाव की रणनीति पर अगर गौर करें तो यह भी साफ है कि चिराग पासवान सिर्फ सीट जीतने भर का खेल नहीं खेल रहे, बल्कि वो एक वैकल्पिक नेतृत्व गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। वो खुद को ना सिर्फ दलित नेता बल्कि एक समावेशी नेता के रूप में पेश कर रहे हैं। अरुण भारती का यह कहना कि चिराग “अब सिर्फ एक समुदाय की नहीं, पूरे बिहार की उम्मीद हैं”, इसी दिशा में पार्टी का प्रयास है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चिराग किस सीट से चुनाव लड़ते हैं। क्या वो जमुई की तरह कोई नई विधानसभा सीट चुनेंगे या फिर किसी पुराने किले को भेदने की कोशिश करेंगे? क्या वो किसी शहरी सीट से उतरेंगे जहां युवाओं की संख्या अधिक है और उनका "बिहारी फर्स्ट" का नारा ज़्यादा प्रभाव डाल सकता है? या फिर वो किसी ग्रामीण और पारंपरिक सीट को चुनेंगे जिससे उनका जनाधार और व्यापक हो सके?
फिलहाल पार्टी की रणनीति यही है कि चिराग बिहार में पूरी तरह सक्रिय रहें, चुनाव लड़ें और अपनी मौजूदगी से प्रदेश की राजनीति को एक नया विकल्प दें। खास बात यह है कि अब तक जिन सवालों को लेकर विरोधी दल चिराग पर निशाना साधते थे—जैसे कि वो दिल्ली में ज़्यादा रहते हैं, ज़मीनी मुद्दों से कटे हुए हैं—अब पार्टी उन्हीं मोर्चों पर उन्हें मज़बूती से खड़ा करने की तैयारी में है।
चिराग पासवान के लिए यह चुनाव सिर्फ राजनीतिक लड़ाई नहीं बल्कि एक व्यक्तिगत संघर्ष भी है। यह उनके लिए यह साबित करने का मौका है कि वह रामविलास पासवान की विरासत को आगे बढ़ाने में सक्षम हैं और बिहार की जनता उन्हें सिर्फ एक नेता के रूप में नहीं, बल्कि एक विकल्प के रूप में देखती है।
लेकिन सवाल वही पुराना है—क्या एनडीए के साथ रहते हुए चिराग उस "धर्म ना जात, करे सबकी बात" वाले नारे को असल में जमीन पर उतार पाएंगे? क्या उनके ‘बिहारी फर्स्ट’ मॉडल को एनडीए का समर्थन मिल पाएगा, या यह नारा उनकी पार्टी के भीतर तक ही सीमित रह जाएगा?
विपक्षी दलों की नजर में चिराग की ये सक्रियता महज़ एक दिखावा हो सकती है, लेकिन पार्टी के अंदरूनी हलकों और सोशल मीडिया पर दिख रही सक्रियता को देखकर इतना तो तय है कि इस बार एलजेपीआर कुछ बड़ा सोच रही है। अब ये चिराग की रणनीति और जनता का मूड ही तय करेगा कि बिहार की अगली विधानसभा में चिराग पासवान बतौर विधायक दिखाई देंगे या फिर एक बार फिर सिर्फ भाषणों और वादों तक सीमित रह जाएंगे।
फिलहाल बिहार की राजनीति में चिराग पासवान का नाम चर्चा के केंद्र में है। पार्टी का माहौल, कार्यकर्ताओं की उत्सुकता और सोशल मीडिया पर बदलती लहर को देखकर लगता है कि एलजेपीआर अब इंतज़ार नहीं करना चाहती। वो चाहती है कि चिराग खुद मैदान में उतरें और पार्टी को नई दिशा दें।
आने वाले हफ्ते और महीने इस दिशा में बेहद अहम होंगे। क्या चिराग पासवान खुद को सिर्फ एक चेहरे से आगे ले जाकर एक जननेता के रूप में स्थापित कर पाएंगे? क्या उनका बिहार में सक्रिय होना पार्टी को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा? यह सवाल अभी अधूरे हैं, लेकिन इनके जवाब 2025 के चुनावी मैदान में ज़रूर मिलेंगे।
0 Response to "बिहार फर्स्ट की जमीनी तैयारी: विधानसभा चुनाव से पहले चिराग पासवान को मैदान में उतारने की कवायद तेज़"
एक टिप्पणी भेजें