Tej Pratap के निष्कासन पर सियासी घमासान: Jitan Ram Manjhi ने Lalu Yadav की नैतिकता पर उठाए सवाल
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**लालू यादव की नैतिकता पर सवाल: जीतन मांझी का तीखा वार, तेज प्रताप निष्कासन से उठे कई सियासी सवाल**
बिहार की सियासत एक बार फिर लालू यादव और उनके परिवार के फैसलों को लेकर गरमाई हुई है। आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने हाल ही में अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया। तेज प्रताप की सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर उठे विवाद के बाद यह कदम उठाया गया, लेकिन अब इस फैसले पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। सबसे तीखा हमला किया है केंद्रीय मंत्री और ‘हम’ पार्टी के संरक्षक जीतन राम मांझी ने, जिन्होंने लालू यादव को नैतिकता की याद दिलाई है।
जीतन मांझी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए कहा कि जो लालू यादव आज मर्यादा और संस्कार की बात कर रहे हैं, वो उस वक्त कहां थे जब राबड़ी देवी ने ऐश्वर्या राय (तेज प्रताप की पूर्व पत्नी) को कथित तौर पर मारकर घर से निकाल दिया था? मांझी ने तंज कसते हुए लिखा कि अगर वाकई लालू जी को नैतिकता की इतनी परवाह होती, तो उस वक्त ही ऐश्वर्या को न्याय दिलाने के लिए अपने परिवार के खिलाफ कार्रवाई करते। लेकिन तब कोई फैसला नहीं लिया गया, न ही कोई एक्शन हुआ।
इस बयान ने तेज प्रताप निष्कासन को लेकर नए सिरे से बहस छेड़ दी है। क्या यह फैसला वास्तव में नैतिकता के आधार पर लिया गया है, या फिर यह सिर्फ चुनाव से पहले की सियासी रणनीति का हिस्सा है? मांझी ने साफ तौर पर कहा कि अगर बिहार में कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव नहीं होने होते, तो लालू यादव तेज प्रताप को अपने गले से लगाए बैठे होते। उन्होंने आरोप लगाया कि लालू परिवार हर बड़ा फैसला केवल सियासी फायदे-नुकसान को ध्यान में रखते हुए करता है।
तेज प्रताप यादव का नाम विवादों से जुड़ा रहा है। कभी पार्टी के नेताओं पर हमलावर बयानबाजी, कभी निजी जिंदगी के खुलासे और अब सोशल मीडिया पोस्ट में किसी अनुष्का नाम की लड़की के साथ तस्वीर वायरल होना – हर बार उनकी छवि और पार्टी दोनों को नुकसान हुआ है। लेकिन इस बार पार्टी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। तेज प्रताप ने इस पोस्ट पर सफाई दी कि उनका फेसबुक अकाउंट हैक हो गया था, लेकिन तब तक पार्टी नेतृत्व अपना फैसला सुना चुका था।
इस पूरे मामले में तेजस्वी यादव की प्रतिक्रिया भी चर्चा में रही। उन्होंने तेज प्रताप को 'बड़ा भाई' कहकर सम्मान तो दिया, लेकिन पार्टी अनुशासन का हवाला देकर फैसले को सही ठहराया। दूसरी ओर जेडीयू और प्रशांत किशोर जैसे नेताओं ने इसे ‘परिवार की राजनीति’ और ‘नाटक’ करार दिया। उनका मानना है कि लालू परिवार का हर फैसला एक पूर्व-निर्धारित स्क्रिप्ट के तहत होता है, जिसे जनता को दिखाने के लिए मंच पर पेश किया जाता है।
ऐश्वर्या राय का मामला इस पूरे विवाद के केंद्र में एक बार फिर से आ गया है। मांझी ने जिस तरह से ऐश्वर्या के साथ हुए कथित अन्याय की याद दिलाई, उसने लालू यादव की कथित नैतिक छवि को कठघरे में खड़ा कर दिया है। सवाल यह है कि जब एक महिला को घर से निकाला गया था, तब पार्टी और परिवार के मुखिया होने के नाते लालू यादव ने कोई कदम क्यों नहीं उठाया?
बिहार की राजनीति में यह पहला मौका नहीं जब पारिवारिक विवाद सियासी मुद्दा बना हो। लेकिन इस बार की बहस इसलिए अहम हो गई है क्योंकि विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और आरजेडी को अपनी छवि सुधारने की जरूरत है। तेज प्रताप के निष्कासन को एक ‘सख्त कदम’ के रूप में प्रचारित किया जा रहा है, लेकिन विपक्ष इसे एक चुनावी स्टंट बता रहा है।
अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में तेज प्रताप यादव की भूमिका क्या होगी? क्या वे राजनीति से कुछ समय के लिए दूरी बना लेंगे या फिर कोई नया राजनीतिक कदम उठाएंगे? साथ ही, क्या जनता लालू यादव के इस फैसले को नैतिक मानकर स्वीकार करेगी या इसे महज चुनावी चाल समझेगी?
फिलहाल, एक बात तो साफ है कि तेज प्रताप यादव का निष्कासन सिर्फ एक पारिवारिक विवाद नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति का बड़ा सियासी मोड़ बन चुका है। लालू यादव की छवि, आरजेडी की स्थिति और विपक्ष की धार – सब कुछ इस फैसले से प्रभावित होता नजर आ रहा है।
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