Prashant Kishor का 'BRDK फॉर्मूला': क्या जातीय संतुलन से बदलेगा बिहार का सियासी समीकरण?

Prashant Kishor का 'BRDK फॉर्मूला': क्या जातीय संतुलन से बदलेगा बिहार का सियासी समीकरण?


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**प्रशांत किशोर का 'BRDK' फॉर्मूला: जातीय संतुलन या सियासी मजबूरी?**

बिहार की सियासत एक बार फिर जातीय गणित के चक्रव्यूह में उलझती नजर आ रही है, और इस बार इसकी कमान संभाली है जनसुराज के नायक प्रशांत किशोर ने। कभी जातिवादी राजनीति को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प लेने वाले पीके अब उसी राजनीति की चौसर पर अपनी जीत की गोटी चल रहे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले उन्होंने 'BRDK' फॉर्मूला अपनाया है, जिसमें ब्राह्मण, राजपूत, दलित और कुर्मी जैसे चार प्रमुख समुदायों को साधने की रणनीति नजर आ रही है। सवाल यह है कि क्या यह फार्मूला बिहार जैसे जाति-आधारित राजनीतिक भूगोल में उन्हें सफलता दिला पाएगा, या फिर यह एक राजनीतिक प्रयोग भर बनकर रह जाएगा?


**B यानी ब्राह्मण – नेतृत्व की तलाश में समाज**


बिहार की राजनीति में ब्राह्मण समुदाय की हिस्सेदारी लगभग 3.65% है, जो ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस और बीजेपी के समर्थन में रहा है। पीके ने जनसुराज अभियान के दौरान इस वर्ग में नेतृत्व का खालीपन पहचाना और खुद को एक विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया। हालांकि, ब्राह्मण मतदाता केवल जाति नहीं, बल्कि विचारधारा और स्थायित्व को भी देखते हैं। ऐसे में प्रशांत किशोर को इस वर्ग का समर्थन तभी मिलेगा जब वे अपनी राजनीतिक स्थिरता और नीति की स्पष्टता को सिद्ध कर पाएंगे।


**R यानी राजपूत – ताकतवर सहयोगी की तलाश**


राजपूत समुदाय, जो राज्य में करीब 3.45% आबादी रखता है और 30 से 35 विधानसभा सीटों पर असर डालता है, हमेशा से सत्ता समीकरण में महत्वपूर्ण रहा है। पीके ने इस समुदाय को साधने के लिए पूर्व सांसद और राजपूत नेता उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह को जनसुराज का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना कर बड़ा दांव चला है। उदय सिंह जैसे कद्दावर नेता का साथ मिलने से जनसुराज को मैदान में मजबूती मिल सकती है, पर यह देखना बाकी है कि क्या राजपूत मतदाता अपने पारंपरिक राजनीतिक रुझानों से हटकर जनसुराज का साथ देंगे।


**D यानी दलित – सबसे बड़ा गणित**


दलित समुदाय बिहार की आबादी का लगभग 17% हिस्सा हैं और उनके वोट पर सभी दलों की नजर रहती है। प्रशांत किशोर ने इस वर्ग को लुभाने के लिए मनोज भारती को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है, जो दलित समुदाय से आते हैं। यह कदम स्पष्ट रूप से दलित वोट बैंक को प्रभावित करने की कोशिश है। हालांकि, चिराग पासवान और जीतन राम मांझी जैसे मौजूदा दलित नेताओं के प्रभाव और उनकी जमीनी पकड़ को देखते हुए पीके के लिए यह राह आसान नहीं होगी।


**K यानी कुर्मी – नीतीश के किले में सेंध**


बिहार की सत्ता की चाबी कही जाने वाली कुर्मी जाति पर पकड़ बनाने के लिए पीके ने एक और बड़ा कदम उठाया है। उन्होंने पूर्व IAS अधिकारी और नीतीश कुमार के पुराने सहयोगी आरसीपी सिंह को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया है। आरसीपी सिंह कुर्मी समुदाय के 'घमैला' वर्ग से आते हैं जबकि नीतीश कुमार 'अवधिया' कुर्मी हैं, जिनकी संख्या ज्यादा मानी जाती है। यह समीकरण बताता है कि पीके न केवल नीतीश के वोट बैंक को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि सत्ता विरोधी लहर में जातिगत संतुलन की रणनीति भी अपना रहे हैं।


**जातीय राजनीति की उलझन**


प्रशांत किशोर का 'BRDK' फॉर्मूला एक ओर जहां चुनावी जीत की ठोस रणनीति लगता है, वहीं यह उनके पुराने विचारों से विपरीत भी दिखाई देता है। वे स्वयं वर्षों तक जाति आधारित राजनीति के खिलाफ मुखर रहे हैं और बार-बार कहा है कि बिहार को जाति से ऊपर उठ कर विकास की राजनीति की जरूरत है। ऐसे में उनका जातीय समीकरण बनाना कहीं न कहीं एक सियासी मजबूरी या व्यावहारिकता की ओर संकेत करता है।


**क्या PK का दांव सफल होगा?**


बिहार में जातीय समीकरण भले ही जरूरी हों, लेकिन अकेले वोट बैंक साधना चुनाव जीतने के लिए काफी नहीं होता। प्रशांत किशोर को न केवल इन समुदायों का समर्थन हासिल करना होगा, बल्कि उन्हें अपने विजन और नीतियों के प्रति विश्वास भी दिलाना होगा। BRDK फॉर्मूला उन्हें एक सामाजिक आधार दे सकता है, लेकिन असली परीक्षा उनकी नेतृत्व क्षमता, संगठन कौशल और जमीनी पकड़ की होगी।


**निष्कर्ष**


प्रशांत किशोर का 'BRDK' फॉर्मूला बिहार की राजनीति में एक नया प्रयोग है, जो पुराने जातीय समीकरणों में नई परिभाषा जोड़ने की कोशिश है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह फार्मूला उन्हें सत्ता की सीढ़ियों तक पहुंचा पाता है, या फिर यह जातीय चक्रव्यूह में उलझकर रह जाएगा। चुनावी रणभूमि में अब सारी निगाहें इसी सवाल के जवाब पर टिकी हैं।

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